कब उंगली पकडे पकडे
हाथ छोड़ कर भागने लगा
पता ही न चला
कब जिंदगी को सुलझाते सुलझाते
खुद उलझ गया
पता ही न चला
रिस्ते बहुत नाजुक थे
उन्हें जीवन भर एक डोर में भांदे रखना था
कब वो डोर कमजोर पड़ गई
पता ही न चला

दूसरों को पहचानते पहचानते
कब खुद को भूल गए
पता ही न चला
ये जीवन था बड़ा प्यारा
जब एक उंगली से हाथ पकड़ा था
ये जीवन था बड़ा प्यारा
जब एक कदम से दौरना सीखा था
ये जीवन था बड़ा प्यारा
ये प्यारा जीवन
कब साथ छोड़ गया
पता ही न चला
कब उंगली पकडे पकडे
हाथ छोड़ कर भागने लगा
पता ही न चला
ये जीवन की कुछ कमाई थी
न जाने किस किस दोर से होकर कमाई थी
सारी कमाई छूट गई
कब वो मोड़ आया
पता ही न चला
कब जिंदगी को सुलझाते सुलझाते
खुद उलझ गया
पता ही न चला
कब उंगली पकडे पकडे
हाथ छोड़ कर भागने लगा
पता ही न चला
Image by engin akyurt from Pixabay
Nice poem
Thank you ankit